यादों की खेती..

ये दिल जो तनहा होता है, तेरे ही ख़याल आते हैं…

सो चुके यादों के सागर में फिर नए उबाल आते हैं…

आज कुछ ऐसा ही हुआ, सोचा कुछ पुराने पल फिर बिखेर दूं…

वक़्त ने जो सिल दिए हैं घाव, एक बार फिर उन्हें उधेड़ दूं…

क्यूंकि जिन नाखूनों के ये ज़ख्म हैं…

उन्ही हथेलियों की गोद में आज भी सोया करता हूँ…

कल के सपनों में ही, कल के बीज बोया करता हूँ…

तुझे तो खो चुका, तेरी यादों को खोने से बहुत डरता हूँ…

इसलिए वक़्त निकाल के, तनहा रह लिया करता हूँ….

One response to this post.

  1. its raely good

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